जयपुर। हैंडलूम इंडस्ट्री के विकास के लिए सभी हितधारकों के साथ गहन चर्चा कर नीतियों और विनियमों पर फिर से विचार करने, इन्फ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकताओं की वास्तविक मैपिंग करने, प्रत्येक शिल्प और क्षमता निर्माण के लिए विशिष्ट वित्तीय मॉडल बनाने की आवश्यकता है।यह राजस्थान के मुख्यमंत्री के आर्थिक सलाहकार और राजस्थान आर्थिक परिवर्तन सलाहकार परिषद के उपाध्यक्ष डॉ अरविंद मायाराम ने कहा। वे आज राजस्थान हैंडलूम 2.0 पर वेबिनार के दौरान मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे, जिसका विषय 'रीइमेजनिंग द हैंडलूम ग्रोथ स्टोरी इन राजस्थान' था। इसका आयोजन राजस्थान हैंडलूम डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (आरएचडीसी) और फिक्की राजस्थान स्टेट काउंसिल द्वारा वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर किया गया था। वेबिनार का संचालन फिक्की राजस्थान स्टेट काउंसिल के हेड श्री अतुल शर्मा ने किया।मैनेजिंग डायरेक्टर, नैशनल हैंडलूम डेवलपमेंट कॉरपोरेशन, रीटा प्रेम हेमराजानी ने कहा कि बहुत से युवा अपनी जड़ों से जुड़ना चाहते हैं और इन कलाओं को सीखना चाहते हैं। युवा पीढ़ी डिजाइन इनोवेशन के मामले में भी अच्छा प्रदर्शन कर रही है और एक सराहनीय उद्यमशीलता की भावना प्रदर्शित कर रही है। हैंडलूम उत्पादों की कीमतें तय करने और कारीगरों से खरीदारी करने के मामले में राजस्थान अच्छा काम कर रहा है। बुनकरों को सुनिश्चित आय इस क्षेत्र को संरक्षित करने में काफी मददगार साबित होगी। इसके अलावा बुनकरों को टेक्नोलॉजिकल इंटरवेंशन, क्वालिटी मैनेजमेंट और मार्केटिंग सिखाने की जरूरत है।
आरएचडीसी की चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक, नेहा गिरी ने कहा कि हैंडलूम भारत की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी कॉटेज इंडस्ट्री है। राजस्थान में 30 हजार से अधिक बुनकर राज्य विभाग में पंजीकृत हैं। आरएचडीसी बुनकरों की गतिविधियों को सपोर्ट करके और उनकी कला को बड़े बाजार के लिए एक मंच देकर उनको बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हैंडलूम क्षेत्र को संरक्षित करने की आवश्यकता है ताकि यह आत्मनिर्भर बन सके और बुनकरों को सशक्त बना सके ताकि वे इस परंपरा को जारी रखें और इसे नई ऊंचाइयों पर ले जाएं।
बाड़मेर के मास्टर कारीगर राणामल खत्री ने कहा कि पहले 350 परिवार अजरख के काम में लगे थे और अब मात्र 10-12 परिवार हैं। स्कूली बच्चों को शिल्प के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए ताकि वे परंपरा को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित हो सकें। हैंडलूम को बढ़ावा देने के लिए स्टोल, साड़ी, टॉप्स आदि जैसे नए डिजाइन और पैटर्न बनाए जा सकते हैं।
आर्च कॉलेज ऑफ डिजाइन एंड बिजनेस, जयपुर की संस्थापक एवं निदेशक, अर्चना सुराणा ने कहा कि स्कूलों में युवाओं के लिए वस्त्र और हाथ से बने फैब्रिक को बढ़ावा देने के लिए करघे स्थापित किए जा सकते हैं। हैंडलूम की कीमत तभी आएगी जब लोग फैब्रिक को महत्व देंगे। बुनकरों के लिए एक गहन स्तर पर आवश्यकता मूल्यांकन आयोजित करके एक डिजाइन कल्चर विकसित किया जाना चाहिए। नए जमाने के उद्यमियों को इस क्षेत्र में लाने के लिए सरकार को हैंडलूम पार्क विकसित करने चाहिए। युवाओं को गौरवान्वित करने के लिए सरकार को डिजाइन संस्थानों के साथ मिलकर निवेश करना चाहिए। ब्लैंडेड यार्न, न्यू फाइबर एक्सट्रैक्शन आदि पर रिसर्च किए जाने की आवश्यकता है।
निदेशक, भारतीय शिल्प और डिजाइन संस्थान, जयपुर, डॉ तूलिका गुप्ता ने कहा कि हस्तशिल्प को अच्छा करने के लिए विभिन्न सामग्रियों और कौशल का उपयोग करके मार्केट सपोर्ट, डिजाइन और तकनीकी सपोर्ट और नवाचार की आवश्यकता है। संस्थानों को शिल्प में नवाचार, घरेलू और निर्यात बाजारों के लिए डिजाइन इंटरवेंशन के साथ-साथ मार्केटिंग के अवसरों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। शिल्प कोई खाली समय के लिए नहीं है; यह एक ऐसा उद्योग है जिसमें प्रत्येक उत्पाद अनूठा है।
हैंडलूम एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के संयुक्त निदेशक, एम सुंदर ने कहा कि भारत में दुनिया भर के उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए विभिन्न प्रकार के हैंडलूम उत्पाद हैं। खरीदार असली उत्पाद चाहते हैं जिसके लिए केंद्र और राज्य सरकार लग्जरी और वैश्विक बाजार के लिए असली उत्पाद बनाने के लिए कदम उठा सकें। अनैतिक प्रथाओं के कारण हैंडलूम की छवि धूमिल होती जा रही है। वास्तविक और नकली उत्पादों के बीच अंतर करने के लिए हितधारकों द्वारा कार्यप्रणाली बनाई जानी चाहिए।
इससे पहले, स्वागत भाषण के दौरान, फिक्की राजस्थान स्टेट काउंसिल के को-चेयरमैन और मंडावा होटल्स के सीएमडी, रणधीर विक्रम सिंह ने कहा कि हैंडलूम क्षेत्र रोजगार और राजस्व पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। महामारी ने इस क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित किया है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों के साथ जुड़ने और हितधारकों के लिए इस क्षेत्र में नई ऊर्जा पैदा करने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की आवश्यकता है। चेयरपर्सन, जयपुर चैप्टर फिक्की लेडीज ऑर्गनाइजेशन, मुद्रिका ढोका के संबोधन के साथ समापन हुआ।
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